Now 06:09AM Good Morning Yr...🧡 Miss you maa. Now 08:01AM यार जिसे मिस करो उससे आजकल बात नहीं होती 😊 अभी थोड़ी देर पहले माँ से बात करने के लिए कॉल किया था बात भी नहीं हुई यार। कोई न साम को बात करूँगा यार 😊 Love You Maa...🥰 अभी पढाई करते हैं यार bye न Now 11:59AM Do what you want?
ESA KYO HOTA HAI? POEM
(ऐसा क्यों होता है? कविता) BY KHILAWAN
पता नहीं ऐसा क्यों होता है?
बार बार दिल कहता है!
ऐसा क्यों होता है?
मन में ख्याल बड़े अजीब हैं!
जीने का न तरतीब है!
तूं भी शामिल है इस भीड़ भरे मेले में।
दिल खुद ही नहीं रह पाता अकेले में।
खुद को अकेले में।
इस भीड़ भरे मेले में,
ऐसा क्यों होता है अकेले में।
शायद मेरे दिल में कोई बात है?
पहले तो चाहत थी
उसके लिए पर अब नहीं
कोई खास है।
यार मन ठण्ड और उदास है।
क्या कोई बात है?
या मन यूँ ही उदास है?
बस एक आस है और एक ही विश्वास है।
दुनिया जो नहीं चाहती मैं वो कर बैठा हूँ।
इश्क का बुखार चढ़ा कहाँ ?
पता नही उतरेगा की नहीं?
पता नहीं..
यार ऐसा क्यों होता है? मन क्यों रोता है?
दिल ही दिल अपने दुख का बोझ और दर्द इतना होता है।
कभी मर जाने को मन होता है।
दिल यूँ ही रोता है।
न जाने ऐसा क्यों होता है?
झूट बोले उसे मैने छोड़ दे करके।
पर लगता है मैं ही न उसे छोड़ पाऊंगा।
यार ऐसा क्यों होता है?
दिल, दिमाग, मन में ये सवाल रोज होता है।
यार ये आखिर क्यों होता है?
सवाल अब मन में ये होता है।
होता है ये तो पता है, पर क्यों होता है?
शायद इसी चक्कर मे फसा है!
मुझे तो सब कुछ पता है!
पर लगता है मुझे कुछ न पता है!
बस यही मेरी खता है।
मुझे पता थोड़ा सा हुआ है।
अब क्या करूँ मैं बताऊँ उसे।
मैं नहीं पीता हूँ अपनी धुन में मैं जीता हूँ।
मुझे डिस्टर्ब करने वाली न कोई और है।
बस एक वो ही है और न कोई और है।
आज मैंने बोला उसे वो बडी खुश है।
सच में यार मुझे भी लगा खुश है।
क्या वाकई में खुश है।
यार वो वाकई में खुश है।
न मैं उससे इजहार कर पा रहा हूँ।
न वो मुझे बोलती है।
लगती है जैसे घूंघट में ही रहकर बोलती है।
आज उसने बोला तूं मुझे पसन्द!
तेरी आदते नहीं, पसन्द मुझे तूं है।
ऐसा क्यों है ? और ऐसा क्यों होता है?
जब मैं उससे दूर जाने की कोशिशें करूँ!
न जाने फिर मैं ही आखिर उसपे क्यों मरूं?
फिर भी उससे दूर रहने की कोशिशें मैं भरपूर करूँ।
आदत बनी है वो मेरी या मैं ही बना हूँ उसका?
पता नहीं, हर रोज पूछता हूँ सवाल एक मुझ जैसा
अपने आप में ही घिरा अपने आप में मस्त।
तकदीरें नहीं दे पा रहीं शिकस्त, अपने आप में लगाता हूँ गस्त।
फिर भी हूँ मस्त, एक दिन दूँगा तकदीर को भी शिकस्त।
जब मैं उससे दूर जाने की कोशिशें करूँ!
न जाने फिर मैं ही आखिर उसपे क्यों मरूं?
फिर भी उससे दूर रहने की कोशिशें मैं भरपूर करूँ।
आदत बनी है वो मेरी या मैं ही बना हूँ उसका?
पता नहीं, हर रोज पूछता हूँ सवाल एक मुझ जैसा
अपने आप में ही घिरा अपने आप में मस्त।
तकदीरें नहीं दे पा रहीं शिकस्त, अपने आप में लगाता हूँ गस्त।
फिर भी हूँ मस्त, एक दिन दूँगा तकदीर को भी शिकस्त।
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