Good Morning I am feeling better than nothing.
अउ जी सब ठीक ठाक ने ?
का का काम बुता चलत हे...?
यार रिप्लाई तो आय नहीं बस लिखत रथन बहुत मन होथे यार देखे के बात करे।
अउ कुछ नहीं बस अतकेच ये।
ले अब भागवत गीता के ल देख लेथन...
33, 34 होगिस हे 35 में आय हन
गीता अध्याय-1 श्लोक-35
प्रसंग-
यहाँ यदि यह पूछा जाय कि आप त्रिलोकी के राज्य के लिये भी उनको मारना क्यों नहीं चाहते, तो इस पर अर्जुन अपने सम्बन्धियों को मारने में लाभ का अभाव और पाप की संभावना बतलाकर अपनी बात को पुष्ट करते हैं-
एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोडपि मधुसूदन ।
अपि त्रलो क्यराज्यस्य हेतो: किं नु महीकृते ।।35।।
भावार्थ :
हे मधुसूदन ! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिये भी मै इन सबको मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के लिये तो कहना ही क्या है ? ।।35।।
अतकेच पढ़े बर आथस लेकिन गोठियास नहीं अउ ब्लॉक कर दे हस न।
तहूँ बड़ निच्चट।
चल बाय त मोर फूलमती
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