कल 26 जनवरी के बधाई दे बर भूल गए रहेव न Happy Republic day dear...
Good Morning Have a Nice Day.
तो कल तक हमने देखा था भागवत गीता का अध्याय 1 का श्लोक 29 तक का भावार्थ अब हम देखेंगे श्लोक 30 के भावार्थ को समझेंगे अर्जुन के मन में क्या चल रहा है:
प्रसंग-
अपनी विषादयुक्त स्थिति का वर्णन करके अब अर्जुन अपने विचारों के अनुसार युद्ध का अनौचित्य सिद्ध करते हैं-
गाण्डीवं स्त्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्राते ।
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मन: ।।30।।
भावार्थ :
हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है, इसलिये मैं खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूँ ।।30।।
अर्जुन का हालत खराब है जैसे मेरा था जब मैंने अपनी वाली के बारे में अपने घर वालों मेरे पिता को बताया उस समय तक।
अभी के लिए बस इतना ही अगले श्लोक के साथ फिर मिलता हूँ बाय बाबू।
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