Now 06:31AM Good Morning Yar... आज उठने में लेट हो गया बबा आलस्य के वजह से यार 6 बजे उठूंगा करके सोचा था। लेकिन लेट हो गया कल दन्तेवश्वरी मंदिर गए थे यार बहुत भीड़ था तो इधर उधर घूमें अंदर नहीं गए। अब कभी और जाएंगे बबा फिलहाल अभी जा रहा हूँ फ्रेश होने bye.
Caution:-
काफी दिनों बाद मुझे लिखने का मौका मिला और मन किया तो आज कुछ ऐसा लिखने जा रहा हूँ जिससे आप आहत भी हो सकते हैं या मुझे गाली भी दे सकते हैं तो इससे आगे बढ़ने के पहले आपको बता दूं कि अगर आपमें थोड़ी कम सहन सिलता है तो आप इस आर्टिकल को न पढ़ें।
तो जब मैं आज अपने दोस्त से बात कर रहा था तो मुझे प्यार को लेकर सवाल पूछने का मन किया और मैंने उनसे बहुत सारे सवाल पूछे जिन्हें मैं नहीं बता सकता लेकिन एक सवाल ऐसा है।
जिसका जवाब मेरे मन में उनसे सवाल पूछते समय आया कि प्यार क्या है?
तो सवाल छोटा सा है और जवाब बहुत लंबा है हो सकता है आप इससे कुछ रिलेट कर पाएं।
तो मेरे हिसाब से प्यार एक अहसास है जिसको कभी भी अकेले महसूस नही किया जा सकता है। हालांकि हम खुद से प्यार कर सकते हैं लेकिन खुद से प्यार करने के लिए भी हमें बाहर से कुछ एक्सटर्नल सोर्स चाहिए होता है।
तो मेरे हिसाब से प्यार कभी भी अकेले से नही किया जा सकता है और न ही हम खुद से खुश रह सकते हैं। हमें किसी न किसी प्रकार के एक्सटर्नल सोर्स की जरूरत होती है।
प्यार हमें किसी से अलग नही करती है वह हमें उससे जोड़ती है और हम प्यार में किसी की उन बातों का बुरा बाहरी तौर पर तो मान सकते हैं जो बातें हमें पसन्द नहीं है, लेकिन अंदर से कहि न कहीं जवाब आता है कि नही बोल दिया तो क्या हुआ।
अपनी ही है या अपना ही है करके जवाब आता है। और उसे चाह कर भी भला बुरा नही कह सकते हैं और उसके प्रति किसी भी हद तक जा सकते हैं।
तो प्यार सिर्फ अहसास करने की चीज नही है यह तो एक्सपेरिएन्स करने की एक समझ है, जो हममें तब आता है जब हमें किसी से प्यार होता है।
और मैं ये आपको ऐसे ही नही बता रहा हूँ। इसको समझने में मुझे लगभग एक साल लगें हैं। इसे समझने के लिए मुझे लर्निंग एटीट्यूट का सहारा लेना पड़ा जिससे भी हो सके इतना सीखा इतना जाना कि अब मुझे पक्का यकीन हो गया है कि मैं प्यार को समझता हूँ। उसे जानता हूँ उसे जीता हूँ और जितना ज्यादा हो सके रिएलिटी की बात को लेकर मैं उसे एक्सपेरिएंस करता हूँ।
तो प्यार क्या है? इस सवाल का सीधा सा कोई भी जवाब नही है। सब के अपने अपने अलग नजरिये हैं। और उसके हिसाब से सब के मतलब अलग अलग हैं।
तो यहाँ पर मैं ये नही कहता कि प्यार किसी एक से ही करो या अनेक से करो मैं सिर्फ यहीं कहूंगा कि उसे आप वैसे ही प्यार करें जैसे वह आपसे करता है।
आपको पता है प्यार जो वर्ड है प्यार जो शब्द है वो कहाँ से निकल कर आया है। प्यार का अर्थ होता है प्रेम और प्रेम शब्द जो आया है वह संस्कृत से आया है जिसका अर्थ होता है परम् मतलब जिससे बढ़कर और कुछ भी नहीं।
मतलब समझ क्या आता है अगर हमें किसी से प्यार है तो हमें उसके साथ रहने या न रहने से कोई फर्क नही पड़ता है फर्क पड़ता है तो सिर्फ उसके बातों से जिससे हम प्यार करते हैं।
वो जो कहे उससे फर्क पड़ता है चाहे वो घुस्सा करे वो भी हमें प्यार लगता है। चाहे वो हमें कहे तुम मुझसे दूर हो जाओ क्योकि वाटेवर रीजन जो भी हो हम उसे आसानी से स्वीकार कर लेते हैं।
मेरे हिसाब से अगर आप ये स्वीकार नहीं करते हैं तो आप उससे बहुत ज्यादा अटेच हो चुके हैं। और किसी से भी बहुत ज्यादा अटेच होने का मतलब है अपने खुद के लिए तो खतरा मोल लेना ही है साथ ही उसके लिए भी।
हाँ अगर आप दोनों में अंडरस्टैंडिंग है तो आप दोनों उसका हल यूँही निकाल लेंगे लेकिन अटेचमेंट ज्यादा है तो आप प्यार के नाम पर अटेचमेंट में ही फस जाएंगे जिससे निकलना बहुत मुश्किल है।
प्यार सिम्पल सा एक वर्ड है पर इसे समझना आसान नही है।
एक बात बोलूँ आपको भी कहीं सच में किसी से प्यार है या नही अपने आप से पूछना चाहिए। क्या जवाब आता है? देखना चाहिए।
अगर मन में सवाल आते जाते हैं तो उनके जवाब हमें ढूंढते जाने हैं आपके सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे।
तो प्यार को मैने तीन तरीके से माना है जो रियल में होता है।
एक प्यार ऐसा है जिसमें केवल मैं ही मैं हूँ होता है। और दूसरा प्यार होता है तूं ही तूं है जिसमें उसके सिवा कुछ नहीं होता है। एक तीसरा नम्बर का प्यार है जिसमें न तो मैं होता है और न ही तूं होता है मतलब हाइएस्ट लेवल ऑफ लव जिसको आत्मीय प्रेम कहते हैं जिसे सिर्फ एक्सपेरिएंस किया जा सकता है समझा जा सकता है।
महसूस किया जा सकता है लेकिन जिसका होना न होना कोई मायने नहीं रखता है। जिसमें न तो उसे आपकी जरूरत होती है। और न ही आपको उसकी जरूरत होती है बस दोनों के बीच में प्यार होता है।
अब आप सोच रहे होंगे ये कैसा प्यार है तो यह रियल में परम् मतलब प्रेम है। जैसे कृष्ण को राधा से था। और राधा को कृष्ण से और इसी कारण दोनों का जो प्रेम है वह आज भी अमर है।
मैं ही मैं हूँ में क्या होता है? इसमें आपको कुछ ऐसा फील होता है कि आपने जो कुछ भी देखा या किया उसमें अपने आप को पातें हैं और किसी से इतना ज्यादा जुड़ जाते हैं कि उसमें भी अपने आप को महसूस करते हैं। अपने को उसमें देखते हैं।
और तूं ही तूं है का मतलब है हर जगह आपको वो ही नजर आती है या आता है और यह ऐसा है कि जिसके लिए हम किसी को भी अपने से जोड़ने को तैयार नहीं होते हैं जुड़ना है तो सिर्फ तुमसे वाली फिलिंग होती है।
अब इसके बात प्यार की हाइएस्ट लेवल आती है वो है न तो मैं हूँ न ही तूं है।
जिसमें अलग होना भी प्यार है चाहे कितनी भी तकलीफ हो अगर प्यार के लिए अलग होना भी पड़े तो यह प्यार है। मतलब कैसे बताऊँ जैसे आप किसी से प्यार करते हैं और किसी कारण से आपकी और उसकी फैमली नहीं मान रही है और आपको भी अपनी फैमली से बहुत प्यार है और उसको भी तो आप दोनों का अलग होना भी प्यार है। साथ रहना जरूरी नही है साथ में प्यार को बांटना जरूरी नही है।
प्यार वो अहसास है जो हमें लाइफ के होने का एहसास कराती है और शायद ही ऐसा कोई होगा जिसे कभी किसी से भी प्यार हुआ न हो और उसे पता न चला हो।
लेकिन लोग क्या करते हैं? उसे जाहिर नही करते हैं उसे छुपाते हैं और यही सबसे बड़ी गलती है।
जिसे लोग आज के समय में प्यार करते हैं न वो प्यार वयार घण्टा कुछ नही है वो मात्र एक अट्रैक्शन है।
अगर प्यार होता है न तो उसे लेकर कुछ भी कर गुजरने वाली फिलिंग आपमें आती है।
और जो हाइएस्ट लेवल का प्यार है उसमें आपको उसे न तो कोई जरूरत है और न ही आपको उसकी जरूरत है उससे अलग हो जाने के बाद भी आप उसके लिए उतना ही महत्व रखते हैं और आपके लिए वो भी उतना मह्त्व रखता है, शायद इसलिए कृष्णा ने राधा का नाम सबसे पहले रखा अपने नाम से भी पहले।
प्यार को महसूस किया है आपने तो कैसा लगता है कमेंट में जरूर बताएं।
मैंने महसूस किया है और जिसे पाना न पाना मेरे किस्मत की बात है और उसे पाने के लिए मेहनत न करूँ गलत बात है।
Be Happy My Dear Inspiration.. जितना भी सीखा है सुरुआत आपसे हुई है शुक्रिया।
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