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Duaa kubul ho |
DUAA KUBUL HO POEM BY KHILAWAN
मिन्नतें खुदा से बस इतनी है बस वो ठीक हो।
मैं जैसा भी हूँ ठीक हूँ मेरे लिए बस वो ठीक हो।
मेरी खुशियां बस उसके लिए हैं।
बस उसकी सारी तकलीफें दूर हों।
मिले उसको कोई तकलीफें तो मुझे महसूस हों।
बस वो खुश हो।
कुछ तो नहीं मेरे पास लेकिन जो भी मैं मांगूँ ऐ खुदा तुमसे उसे नशीब हो।
रखना निगाहें करम ऐ खुदा बस मेरे किस्मत में बस वो ही अजीज हो।
DUAA KUBUL HO POEM मेरे दिल से निकली आवाज है और इसे मैने अकेले में लिखा था रोड के किनारे दुकान के खुलने का इन्तजार करते हुए..
तो कैसा लगा पढ़ के कमेंट करो यार..
मैं जैसा भी हूँ ठीक हूँ मेरे लिए बस वो ठीक हो।
मेरी खुशियां बस उसके लिए हैं।
बस उसकी सारी तकलीफें दूर हों।
मिले उसको कोई तकलीफें तो मुझे महसूस हों।
बस वो खुश हो।
कुछ तो नहीं मेरे पास लेकिन जो भी मैं मांगूँ ऐ खुदा तुमसे उसे नशीब हो।
रखना निगाहें करम ऐ खुदा बस मेरे किस्मत में बस वो ही अजीज हो।
उसकी सारी की सारी दुःख, दर्द और तकलीफें मुझे नशीब हों।
बस दिल से दुआ है तुमसे बस वो खुश हो।
पता है मुझे मेरे किस्मत में वो नहीं लेकिन उसके किस्मत में जो हो उसे पूरा नशीब हो।
बस खुशियाँ मीले उसे तकलीफें नशीब न हों।
जो भी हो जैसी हो बस खुश रहे।
यही कहा करता हूँ तुमसे खुदा।
मन्नते जो भी मांगूँ मेरे लिए पूरी करना या ना करना।
पर मन्नते पूरी वो जरूर करना जो उसके लिए हो।
जिस तकलीफ से वो गुजर रही हो वो मुझे नसीब हो।
बस और कुछ न मांगूँ मैं तुमसे बस उसके चेहरे पर हसीन मुस्कान हो।
जो हो मुझे कुछ नही पता बस मैं उसको चाहूँ और उसका नशीब हो।
बस मेरे दोस्त की खुशी उसे इतना नशीब हो।
पूरी जिंदगी हँसे और उसके हसने से खुशी मुझे भी नशीब हो।
तकलीफें मुझे देना उसकी किस्मत की।
खुशी मेरे हिस्से की तुम उसे देना।
मुझे वो चाहे छोड़ दे तुम उसका साथ न छोड़ देना।
मुह मोड़ लूँ मैं उससे रूठ कर पर मुँह तुम न मोड़ना।
दिल तोड़ दूँ कभी गलती से लेकिन तुम उसका दिल कभी न तोड़ना।
ऐ खुदा तुं साथ दे न दे मेरा पर उसका साथ तूं कभी न छोड़ना।
किस्मत में भले ही वो न हो मेरे पर दोस्त के जैसे रहना उसका मेरे साथ, कभी न छोड़ना।
कुबूल हो दुआ कुबूल हो..
ए मेरे खुदा तू ही है भगवान तू ही मसीह है, तू ही रब, जीजस भी तू है, सदगुरु भी तू, विष्णु भी तू, तू ही ब्रम्हा, महेश भी तुं,,,
तुं है सब कुछ मेरे लिए मैं तेरे लिए।
कुबूल हो जाऊं यही दुआ कुबूल हो जाये।
कुबूल हो..
यह कविता किसी भी प्रकार के जाती धर्म को ठेस पहुचाने के लिए नहीं लिखा गया है आपको यदि ऐसा लगता है तो आप गलत हैं क्योंकि भगवान एक मानते हम उसे अगल हैं।
आपके दिल को ठेस पहुंचा हो तो दिल से माफी अपना समझ के माफ कर देना।।
DUAA KUBUL HO POEM मेरे दिल से निकली आवाज है और इसे मैने अकेले में लिखा था रोड के किनारे दुकान के खुलने का इन्तजार करते हुए..
तो कैसा लगा पढ़ के कमेंट करो यार..
यह कविता मेरे दोस्तों के नाम...☺️
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